वो दिन भी क्या दिन थे... (part 2) । sudhanshu kumar sah । skumarindia1

वो दिन भी क्या दिन थे (part 2)


वो दिन भी क्या दिन थे,

एक बचपन का जमाना था,

जिस में खुशियों का खजाना था.

चाहत चाँद को पाने की थी

पर दिल तितली का दिवाना था..

छुट गया वो खेलने जाना,

पेडोँ की छाँव मे वक्त बिताना.

वो नदियोँ मे नहाने जाना

शाम ढले घर वापस आना.

ले चल मुझे बचपन की,

उन्हीं वादियों में ए जिन्दगी…

जहाँ न कोई जरुरत थी,

और न कोई जरुरी था.!!

फ़िक्र से आजाद थे और, 

खुशियाँ इकट्ठी होती थीं..

वो भी क्या दिन थे, जब अपनी भी,

गर्मियों की छुट्टियां होती थीं.

कैसे भूलू बचपन की यादों को मैं,

कहाँ उठा कर रखूं किसको दिखलाऊँ?

संजो रखी है कब से कहीं बिखर ना जाए,

अतीत की गठरी कहीं ठिठर ना जाये.!

काग़ज़ की कश्ती थी पानी का किनारा था, 

खेलने की मस्ती थी ये दिल अवारा था, 

कहाँ आ गए इस समझदारी के दलदल में, 

वो नादान  बचपन भी कितना प्यारा था।


Written by sudhanshu kumar sah

Published by skumarindia1

(Word source:internet)

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थैंक फॉर रीडिंग 🙏



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